Monday, January 26, 2009
पृथवी थियेटर : दादा के सपने को साकार करती संजना कपूर`
हिन्दी सिनेमा के पितामह पृथवी राजकपूर के शताब्दी वर्ष के अवसर पर पृथ्वी थियेटर की संचालिका संजना कपूर ने पृथ्वी उत्सव मनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। इस ऐतिहासिक थियेटर की संचालिका एवं पृथवी राज कपूर की पौत्री संजना ने रंगकर्म के फलक को एक नवीन आयाम देने की चेष्टा की है। १९९३ में जब से संजना ने पूर्णरूप से पृथ्वी थियेटर की जिम्मेवारी ली उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने दादा के सपने, पिता शशिकपूर एवं माघ् जेनीफर के अरमान को अत्मसात कर संजना ने जैसे पृथ्वी थियेटर को अपने सांसों में बसा लिया है। वेश भूषा, सजने-संवरने और रंग-ढ़ंग से बिल्कुल साधारण, मेहनती लड़की की तरह दिखनेवाली संजना एक सेलिब्रीटी है यह सहज ही नहीं कोई भांप सकता है। सुरू से ही संजना की आत्मिक अभिलाशा थी कि वह अपने पिता जेफरी केण्डाल की तरह चलित रंगशाला(जतंअमससपदह जीमंजतम) मे काम करे। लिकिन भारत में वैसे थिएटर का कोई भविष्य नहीं था। उसने १९८८ मेें नसिरुघीन शाह के साथ हीरो हीरालाल में काम किया किन्तु उसे शीघ्र ही पता चल गया कि सिनेमा में काम करना उसकी मनोवृघि के अनुकूल नहीं है। सिनेमा से मोह भंग होने के बाद संजना ने लगभग साढ़े तीन वर्षों तक स्टार टेलीवीजन के 'अमूल ईण्डिया सो` का संचालन करने के बाद पृथवी थियेटर को ही अपने जीवन का उद्येश्य बना लिया। संजना के अनुसार उसके जीवन का सबसे अच्छा अभिनय पृथवी थिएटर में जेफरी कण्डाल के निर्देशन में 'गैसलाईट` शीर्षक अंग्रेजी नाटक में ही हुआ है। १९८४ मे संजना की माघ् जेनीफर के निधन के बाद संजना के भाई कुणाल और फिरोज खान के उपर थिएटर का जिम्मा आ गया । संजना कहती हैं कि जब उन्हों ने थिएटर के काम में हिस्सा लेना शुरू किया तब वो फिरोजखान के साथ नाट्य उत्सव आयोजित करना सीखा करती थीं। आज के इस भागदौड़ की जिंदगी, सिनेमा, टेलीवीजन और कम्पयुटर के युग में भी वह थियेटर की अवधारणा को अपने पूरे मनोयोग, संकल्प, श्रम और धैर्य के साथ स्वरूप देने में लगी है। बाल कलाकारों के लिए बाल थियेटर, प्रयोगात्मक रंगशाला (मगचमतपउमदजंस जीमंजतम) तथा नाट्य महोत्सव ( जीमंजतम मिेजपअंस), पृथवी गैलरी आदि के साथ-साथ कई रूपों मंे इसका विस्तार हुआ है। दो सौ दर्शकों के बैठने की व्यवस्था के साथ- साथ यह थियेटर साल में लगभग तीन सौ दिन बुक रहता है तथा प्रतिवर्ष तकरीबन ४०० प्रस्तुति आयोजित करता है। आम तौर पर अस्सी प्रतिशत टिकट बिघी के साथ साल में लगभग ६५००० दर्शकों के पास कलात्मक प्रस्तुति पहुघ्चाता है। भारतीय कला जगत को विश्व फलक पर सम्मानित स्थान दिलाने से लेकर रंगकर्म की संस्कृति में नूतन प्रयोग करते हुए भी उसकी थाती को अक्षुण्ण रखने में संजना अहम भूमिका निभाती रही है। संजना पृथ्वी थियेटर केमाध्यम से रंगकर्म को आंदोलन का स्वरूप देने में सफल रही हंै। इस क्रम में उन्होंने पृथ्वी थियेटर को स्थानीय थियेटरों यथा कलकघा के 'सेगुल` (ैमंहनसस) चेन्नई के 'मेजिक लालटेन`(डंहपब स्ंदजमतद) दिल्ली के 'हैबिटेट`(भ्ंइपजंजम) बंगलोर के 'रंगशंकर` और पूने के रंगवर्धन आदि को संबद्ध कर थियेटर संस्कृति के विकास को एक नया आयाम दिया है। पृथवी महोत्सव के साथ स्थानीय थियेटर को जोड़ना तथा हिन्दी सहित विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं यथा मराठी, गुजराती, बंगाली आदि से जुड़कर पूरे भारत में रंगकर्म का माहौल तैयार करना सहज नहीं था। यह रातों रात संभव भी नहीं हुआ। वर्षो की कड़ी मेहनत के बाद यह हो सका है। हिन्दी भाषा-भाषियों के लिए भारतीय सिनेमा उद्योग की राजधानी बंबई में एक छोटा सा नाट्य दीर्घा स्थापित करने के पृथ्वी राजकपूर के सपने को साकार करने के लिए उनके सबसे छोटे पुत्र शशिकपूर और पुत्रवधू जेनीफर ने पिता के मृत्यु के छ: वर्ष बाद ५नवंबर १९७८ में जूहू में पृथ्वी थियेटर के नाम से एक ऐसे कला संस्था की स्थपना की जो कला के क्षेत्र में मील का पत्थर सिद्ध हुआ है। इस संस्था की स्थापना के पीछे उनका दद्येश्य था एक ऐसे स्थल का निर्माण जहाघ् नए कलाकारों को विकसित होने का अवसर मिले, कलाकार एवं कलाप्रेमी, रंगकर्मी के बीच सीधा संपर्क स्थापित हो। १९४४ में जिस चलित रंगशाला (उवइपसम जीमंजतम बवउचंदल) का बीजारोपन पृथ्वी राजकपूर ने कलाकरों, लेखकों, तकनीकी कर्मियों सहित१५० समर्पित कलाप्रेमियों की टोली लेकर की थी वह आज अपने संपन्न स्वरूप के साथ विश्व कला परिदृश्य में अपना पृथक स्थान रखता है और निश्चय ही इस सब के पीछे संजना के लगन और श्रम का फल है। यू तो कई वर्षों से संजना पृथ्वी उत्सव मनाती रही ंहैं पर इस वर्ष उन्हों ने विशेष रूप से कई महीनों तक श्रमसाध्य कार्य करते हुए पृथ्वी राज कपूर एवं हिन्दी सिनेमा के सुरुआती दौर तथा रंगकर्म पर उनके प्रभाव को विषय बनाकर शोध पूर्ण कार्य भी किया। इस अवसर पर उस महान कलाकार की नाट्य प्रस्तुतियों पर एक विशिष्ट प्रदर्शनी आयेाजित की गयी । इस प्रदर्शनी में मुख्य रूप से कालिकादास की 'संकुतला`, सामाजिक राजनैतिक प्रस्तुति 'दीवार`, के साथ साथ 'पठान`,'गघर`, 'आहूति`, 'कलाकार`, 'पैसा`, सहित 'किशान` की प्रस्तुति की गयी। ये कुछ ऐसी नाट्य प्रस्तुति थी जिसमें पृथवी राजकपूर ने स्वयं मुख्य भूमिका निभायी थी। इस अवसर पर हबीब तनवीर की नाट्य प्रस्तुति, बंगाल से टैगोर के चयनित नाटकों की प्रस्तुति तथा साथ-साथ नसीरुघीन शाह का काव्यपाठ विशेष आकर्षण था। आज जबकि 'पृथ्वी उत्सव` कला के क्षेत्र में एक मिशाल कायम कर चुकी है फिर भी संजना के लिए अभी और सपनों को साकार करना बाकी है। वेा कहती हैं कि ''मेरा वास्तविक सपना तो उसदिन पूरा होगा जब कलाकरों, उनके विभिन्न पोशाकों और साधन से भरे तथा कलात्मक रंग में रंगे बस में सवार होकर हम सम्पूर्ण भारत वर्ष में अपने नाट्य प्रस्तुतियों के संग भ्रमण करेंगे और मैं समझती हूघ् कि शीघ्र ही हमारा यह सपना भी पूरा होगा।`` पृथवी थियेटर के एक न्यूज लेटर के अनुसार रामू रमानाथन कहते हैं 'वो एक बहुत ही अच्छी आयोजनकर्त्री हैं। प्रत्येक वर्ष पृथवी थियेटर के घ्यिा-कलापों में एक नया आयाम जोड़ती हैं जैसे कुछ वर्ष पूर्व से अंतर्राष्टघीय कठपुतली महोत्सव का आयोजन भी किया जा रहा है। थियेटर केा आमलोगों तक पहुचाने और स्थानीय कला संगठनों में एक नव उर्या के संचार का यह एक सार्थक प्रयास है। संजना कहती हैं कि आज यदि मेरे दादा जिवित होते तो यह देखकर बहुत ही खुश होते कि उनके सपने में आज कितना रंग भर गया है। अपनी आयोजन क्षमता और संकल्पों के साथ संजना आज भी पृथवी थियेटर की संरचनाओं को सुदृढ़ करने में लगी हैं। पृथवी थिएटर में एक सुव्यवस्थ्ति कला पुस्तकालय के निर्माण की भी योजना है जहाघ् कला प्रेमी अपनी जिज्ञासाओं को शांत कर सकें। 'कला देश की सेवा में` जो थियेटर का मूल मंत्र है, उसे चरितार्थ करने के लिए कृत संकल्प दिखती है।
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नमन है ऐसे कलाकारों को जिन्होंने हिन्दी सिनेमा की नींव रखी.
ReplyDeleteआपका सशक्त लेखन में रोचक जानकारी है
स्वागत है आपका
Sanjnaake liye mere manme hameshaase behad izzad kaa sthaan raha hai. Aur unkee maa ke prateebhee. Donohee gazabkee khuddar, shaleen dignified personalities rahee hain. Jis garimaa ke saath Jennifer aur Sanjnaane apne karykshetr sambhale, wo Hindi film jagat me bemisaal hai.
ReplyDeleteMai Waheeda Rehman ko unke saath rakhnaa chahungee...jinhon ne apne terms & conditions pe kaam kiyaa....kabhi ashleeltaako, kisee scene kee zaroorat kehke bahana nahee banaya, ya uskaa excuse liya. Gar ham chahen, to har haalme apnee garimaa banaye rakh sakte hain. Ye chand jeevant udaaharan hain.
Badhaee ho ! Aur dhanyawadbhee...is lekhke liye.
blog jagat main aapka swagat hai.
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