- राजनीति करनी है तो गुंडागर्दी से बाज आओ।
- वोट लेना है तो काम करो।
- क्षेत्रिय क्षत्रपों को कहा, 'दलाली बन्द करो`।
इस लोकसभा चुनाव में बिहार के मतदाताओं ने राजनीतिज्ञों को कुछ साफ संकेत दिए हैं। आम जन को बहला फुसला कर, आपस में लड़ा कर वोट झीटने वाले नेताओं के दिन लद गए। आज का मतदाता विशेष रूप से युवा, नेताओं की बाजीगरी और इनके दाव-पेंच को भली भॉति समझती है। बिहार की जनता ने यह साफ कर दिया है कि राजनीति की विसात पर नेताओं के पासे फेंकने की कलाबाजी अब ज्यादे दिन नहीं चलने वाली। जनता ने इस बार के चुनाव में तीन स्पष्ट संकेत नेताओं को दिए हैं-
राजनीति करनी है तो गुंडागर्दी से बाज आओ।लोक सभा के चुनावी प रिणाम इस दृष्टि से भारतीय राजनीति के लिए एक शुभ संकेत लेकर आए हैं कि बाहुबलिओंके दिन लद गए। वोट लुटेरों को जनता ने इस बार अंगूठा दिखा दिया। जनतंत्र में मतों का अपहरण अत्यंत घातक रहा है। आम जन को भय से आक्रांत कर विगत दशकों में बाहुबलिओं ने जिस प्रकार मत लूट कर जनतंत्र का मखौल उड़ाया और अपना वर्चस्व स्थापित किया उससे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बिहार में प्रजातंत्र का अपहरण हो गया है। पार्टियां बाहुबलियों को अधिक से अधिक टिकट देने लगी क्योंकि भय के आगोश में वे विजयी हो जाया करते थे। भला हो के० जे० राव जी का जिन्हों ने अपनी निष्ठा, तत्परता और पराक्रम से संविधान सम्मत प्रभावों का उपयोग कर जनमत को सुरक्षा प्रदान की और उसे अपहृत होने से बचाया। बाद के दिनों में जब न्यायिक प्रक्रिया तेज करते हुए प्रशासन ने इन बाहुबली नेताओं पर सिकंजा कसना प्रारंभ किया तो पैंतरे बदलते हुए इन बाहुबलियों ने अपने परिवार के अन्य सदस्यों के द्वारा सत्ता में काबिज हो अपना प्रभाव बनाने की चेष्टा की। परन्तु जनता ने उन्हें भी नकारते हुए साफ कह दिया कि राजनीति करनी है तो गुंडागर्दी से बाज आओ।
वोट लेना है तो काम करो।
यह दूसरा महत्वपूर्ण फरमान बिहार की जनता ने इस चुनाव में नेताओ को सुनाया है। बिहार केलिए यह एक मिथक बन गया था कि बिहार के लोगों को विकास से कोई मतलब नहीं है। विकास उनके लिए बेमानी है। लालू प्रसाद ने तो कई बार खुले तौर पर वक्तव्य जारी कर कहा कि वोट का विकास से कोई लेना देना नहीं। विकास के नाम पर वोट नहीं मिलता। इस बार चुनाव में बिहार के लोगों ने इस मिथक को तोड़ कर रख दिया। बिहार की जनता ने साफ कहा कि हमें भी सड़क, बिजली, पानी चाहिए। काम करोगे तो वोट दूँगा। काम नहीं करोगे तो केवल भाषणबाजी पर हाम वोट नहीं देंगे। कुछ गाँवों के लोगों ने तो विकास की मांग को लेकर मतदान का बहिष्कार तक कर दिया। विकास के लिए तो यह एक अच्छी परम्परा की शुरुआत है किन्तु मतदान का बहिष्कार कतई अच्छी बात नहीं कही जा सकती। फिर भी विकास के लिए जनता की भूख सराहनीय है।
वस्तुत: जाति, वर्ग में विभाजित आम मतदाता अपना यह संदेश नहीं दे पाती थी। इस बार के चुनाव में विकास के लिए मत देकर जनता ने अपनी बात कह दी। उसने कहा कि अन्य सभी राजनीतिक सोच के साथ-साथ विकास भी हमारे लिए अहम मुद्दा है।
क्षेत्रिय क्षत्रपों को कहा, 'दलाली बन्द करो`।तीसरा महत्वपूर्ण फरमान जो बिहार की जनता ने नेताओं केे नाम जारी किया वो यह कि बहुत हुआ, अब हम अपने मतों के बल पर तुम्हें केन्द्र में दलाली नहीं करने देेंगे। यह संदेश जनता ने क्षेत्रीय दलों को नकार कर राष्ट्रीय पार्टियों के हक में अपना मत देकर स्पष्ट कर दिया है। विगत चुनावों में जनता ने यह महसूस किया कि क्षेत्रिय पार्टियाँ उनसे मत लेकर प्रांत और राज्य के हक में उस शक्ति का प्रयोग नहीं करते बल्कि जनता के द्वारा दिए गए उस शक्ति का प्रयोग वे निजी स्वार्थ के लिए बाँट-बखरे की राजनीति में करते हैं।
इस बार जनता ने बड़े साफ तौर पर कहा है कि अपने मतों का उपयोग हम तुम्हें दलाली के लिए नहीं करने देंगे। दूसरा यह कि क्षेत्रिय पार्टियों के सशक्त होने से जातिवाद, अवसरवाद को बढ़ावा
मिलता है और राष्ट्रीय हित में ठोस निर्णय नहीं हो पाता। राष्ट्रीय नीतियों के अनुपालन में क्षेत्रिय पार्टियाँ अपने स्वार्थ के लिए बाधा उत्पन्न करती हैं। यही कारण है कि बिहार की अधिकांश जनता ने कांग्रेस के नेतृत्व मंे बनी यू०पी०ए०, तथा भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी एन०डी०ए० के पक्ष में अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
निश्चय ही बिहार के मतदाताओं ने इस बार जिस तरह अपने विवेक के आधार पर मतदान किया है यदि यह परम्परा जारी रही और यदि क्षेत्रिय पार्टियों के कलाबाज नेताओं के बहकाबे में, बाँटो और राज करो की नीति में वे नहीं उलझे तो बिहार की प्रगति को कोई रोक नहीं सकता। निश्चय ही इससे राष्ट्रीय एकता और अखंडता मजबूत होगी। मैं विशेष रूप से बिहार के युवा मतदाताओं को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने जिस सुलझे सोच, बौद्धिकता और विवेक के साथ अपने मताधिकार का प्रयोग किया है वह भावी राजनीति को स्वस्थ्य एवं सशक्त दिशा प्रदान करेगी।
Tuesday, June 2, 2009
डंके की चोट पर जनता का पैगाम
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