‘जो दूसरों पे तबसिरा कीजिए सामने आइना रख लिया कीजिए’
डा0 कलानाथ मिश्र
आज अस्ट्रेलिया में जिस तरह भारतीय छात्रों पर हमले किए जा रहे हैं उसकी जितनी भी भर्तस्ना की जाय कम है। यह अब्छी बात है कि भारत के सभी शीर्ष नेता, बुद्धिजीवी उसकी पुरजोर भर्तस्ना कर रहे है। इस घटना से भारतीयों को कितनी पीड़ा हुई है और कितना आक्रोष उनके भीतर है इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
किन्तु अस्ट्रेलिया में झाकने से पहले हमें जरा अपने देष में भी झाकना चाहिए। अस्ट्रेलिया तो एक स्वतंत्र राष्ट्र है उसका पृथक संविधान है। हम पासपोर्ट और वीसा लेकर उस देष में जाते हैं। उन पर उंगली उठाने के पूर्व जरा अपनी गिरेवान पर नजड़ डालिए कि कितने पाक-साफ हैं आप अपने ही देष के नागरिकों के संवैधानिक अधिकरों के रक्षा के प्रति। अपने ही देष में, एक ही संविधान के अंतर्गत जिस तरह महाराष्ट्र में हिन्दी भाषियों, खासकर निर्दोष बिहारियों पर हमले किए जा रहे हैं, जिस तरह राज ठाकरे के नेतृत्व में मनसे के गुण्डों के द्वारा सरेआम बिहारी छात्रों का अपमान किया जाता रहा है, उन्हंे बेरहमी से पीटा जा रहा है और महाराष्ट्र की पुलिस तथा सरकार मूक दर्षक बनी बैठी रही। वे इन घटनाओ पर कराई से निपटने के बजाय जिस तरह तमाषबीन बने रहे वह क्या कम शर्म की बात है। किन्तु इस घटना पर राज्य के साथ साथ भारत सरकार का रुख भी जितना नरम रहा वह क्या संदेष देता है।
संविधान के अनुसार भारत के किसी भी प्रांत का नागरिक बिना किसी रोक-टोक के षिक्षा, रोजी-रोटी, नौकरी के लिए देष के किसी भी क्षेत्र में जा सकते हैं। भारत के संवैधानिक मर्यादा एवं नागरिक के मूल अधिकरों के रक्षा का शपथ राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधान मंत्री से लेकर सभी संवैधानिक पद पर बैठे लोग पद ग्रहण करने के पूर्व लेते हैं। पर महाराष्ट्र की घटना पर उनकी चुप्पी और उदासीनता ने यह सिद्ध कर दिया कि वे उस शपथ के प्रति कितने निष्ठावान है। इतना ही नहीं क्रूरता की पराकाष्ठा पार करते हुए, सभी नियमों को ताक पर रखकर महाराष्ट्र पुलिस ने जिस तरह से सोची समझी रणनीति के तहत इनकाउन्टर दिखाकर सरेआम मीडिया के सामने राहुल की हत्या करदी वह भारत के संविधान पर एक करारा प्रहार है। कम से कम अस्ट्रेलिया की पुलिए इतनी संवेदन हीन तो नहीं हुई है। उन्होंने कानून तो अपने हाथ में नहीं लिया है। अस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों के विरोध प्रदर्षन पर महाराष्ट्र के तर्ज पर पुलिस बर्बरता की हदें तो नहीं पार कर रही है। अस्ट्रेलिया में हो रहे हमले की पुरजोर भर्तस्ना करने के साथ साथ हमें यह भी याद रहना चाहिए कि ‘बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाय।’
महाराष्ट्र में दिखावे के लिए जब राज ठाकरे को गिरफ्तार भी किया गया तो लगा जैसे उन्हें हीरो बनाया जा रहा है। उनके गुण्डे उत्पात मचाते रहे और पुलिस मूक दर्षक बनी रही। ऐसी स्थिति में दूसरे देष के सरकार से हम क्या अपेक्षा कर सकते है। अभी हाल मे कानून की पढ़ाई करने गए बिहारी छात्रों से जिसतरह के भरकाउ और क्षेत्रवाद को बढ़ाबा देने वाले प्रष्न पूछे गए उसकी जितनी भी भर्तस्ना की जाए कम होगा। सब से आष्चर्य की बात तो यह है कि प्रष्न पूछने वाले कानून के जानकार थे। उन्हें कम से कम भारतीय संविधान का ज्ञान तो अवष्य होना चाहिए। जिनकी पढ़ाई कानून सम्मत विचारों का पक्ष रखने के लिए होता है वे भी यदि इस तरह की हरकत करते हैं तो यह एक गम्भीर मामला बनता है। कुछ छात्रों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं, चंद हुल्लरबाजों के द्वारा किसी बहकावे में आकर इस प्राकर का हर्कत किया जाना एक बात है किन्तु जब पढ़े लिखे लोगों के द्वारा, समाज के प्रबुद्ध वर्ग के द्वारा इस प्रकार की हर्कत की जाती है तो निष्चय ही उनके भीतर भी क्षेत्रवाद का विष आकण्ठ भर गया है। इससे पूरे संघीय ढ़ाचे पर प्रष्न चिन्ह लगाता है। राष्ट्रीय अखण्डता पर गमभीर खतरे का पूर्वाभास मिलता है। हमंे इन घटनाओं को हल्के से नहीं लेना चाहिए।
आरम्भ में ही जिस प्रकार भाषाई आधार पर प्रांतों का बटवारा किया गया वह एक भयंकर भूल थी। यही कारण है कि भाषा के नाम पर, क्षेत्र के नाम पर, मराठा मानुस के नाम पर ओछी राजनीत करनेवालों को हथगण्डा मिल गया। इस तरह क्षेत्रवाद को बल मिलना निष्चित ही था। ऐसी स्थिति में राष्ट्रभाषा को पूरी तत्परता और शख्ती से लागू किया जाना ही एक मात्र उपाय था जिसके आधार पर देष को टूटने से बचाया जा सकता था तथा राष्ट्रीय भावना को बल मिलता। किन्तु वोट बैंक की ओछी राजनीति के कारण यह नहीं हो पाया। दिनानुदिन राष्ट्रभाषा की स्थिति देष मंे कमजोर होती गयी है। निष्चय ही इससे भविष्य में क्षेत्रवाद को और बल मिलेगा और आने वाले दिनों में भारत की अखण्डता के लिए यह एक बड़ा खतरा बन गया है।
राजठाकरे के नेतृत्व में मनसे के गुण्डा तत्वों द्वारा हिन्दी भाषियों के विरुद्ध चलाया जा रहा अभियान राष्ट्र द्रोह है। महाराष्ट्र सरकार और प्रषासन जिस तरह से चुप्पी साधे हुए है और इन गुण्डों का मनोबल बढ़ा रहा है इससे तो प्रतीत होता है कि महाराष्ट्र में संवैधानिक सरकार न होकर तानाषाही है।
देष और विदेष में चल रहेे इस विद्वेषात्मक कारवाई की सम्मलित रूप से पुरजोर ढंग से भर्तस्ना की जानी चाहिए लेकिन दूसरे पर अंगुली उठाने के पहले अपने गिरेवान में झाकना चाहिए तभी हमारी बातों को विदेषों में भी गम्भीरता से लिया जायगा। क्यों कि किसी शायर ने ठीक ही कहा है ‘
‘जो दूसरों पे तबसिरा कीजिए, सामने आइना रख लिया कीजिए’
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