‘देखन में छोटन लगे घाव करे गम्भीर’

सोचा था इस अंक के अंत में सकारात्मक समाचारों का विष्लेषण प्रस्तुत करूँगा ताकि निराशावादी खबरों से पाठकों को कुछ निजात मिल सके, उनके मन को कुछ तस्ल्ली हो सके, साथ ही युवाओं के दिल में नव आशा का संचार हो । पर ऐसा कुछ नहीं कर पा रहा हॅू मैं इसबार भी, बल्कि हम यहाँ एक ऐसी घटना पर विचार करेंगे जो है तो छोटी पर राष्ट्र की शासन व्यवस्था में जिसका अत्यन्त ही नकारात्मक दूरगामी प्रभाव होगा ।
मै उल्लेख कर रहा हूँ बिहार के उन सांसदों एवं राष्ट्र के कर्णधार नेताओं का जों गत दिनों राजधानी एक्सप्रेस के वातानुकूलित प्रथम श्रेणी में बेटिकट, बे झिझक सफर कर रहे थे और जिन्होंने रेल कर्मियों से मारपीट की । प्रश्न यह उठता है कि क्या सांसदों से टिकट की मांग करना इतना बडा गुनाह है कि इमानदारी और निष्ठा पूर्वक अपने कर्तव्य का लिर्वहन कर रहे रेल कर्मचारियों को अपमानित किया जाय और उनके साथ मारपीट की
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लालू जी तो इस घटना से इतने आहत हो गए कि इस घटना के जाँच तक आदेष दे दिया। निष्चय ही जाँच का निष्कर्ष क्या होगा इससे भी जनता वाकिफ है। क्यों कि मंत्री जी को इसमेें भी किसी षडयंत्र की बू आ रही है । लालू जी से सम्बन्धित कोई भी घटना यूँ ही नहीं घटित हो सकती, उनके साथ स्वाभाविक रूप् से कुछ नहीं हेाता, सब के पीछे कुछ न कुछ षडयंत्र अवष्य होता है ।
डी.आर.एम. का आनन फानन में किया गया तबादला निष्ठावान कर्मचारियों को अपने कर्तव्य का निर्वाह करने में व्यवधान उत्पन्न करने जैसा है । हमें इससे बचना चाहिए ताकि आम जनता का इसका खमियाजा नही मुगतना परे और भविष्य में पदाध्किारी अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन न हो जएँ ।
ग्लानि से भरे और हतोत्साहित पदाधिकारियों के बल पर विकासोन्मुख तथा कुषल षासन व्यवस्था की कल्पना हम नहीं कर सकते। क्या इतनी सी बात हमारे कर्णधार नहीं समझते। समझते हैं बिल्कुल समझते हैं पर फिर भी जान बूझ कर वे समय -समय पर ऐसा मिषाल प्रस्तुत करते रहते हें कि उनके दस छद्म दबदबा के नीवे उनसे उचित अनुचित जानने का कोई साहस नहीं कर सके । यही तो कार्यषैली थी अंग्रेजों की और जमींदारों की । अब पुनः हम किस सामन्ती प्रथा को जन्म दे रहे है ।
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