मनवाधिकार और बाल अधिकार: एक विहंगम दष्टि
कलानाथ मिश्र
मानवधिकार का दायरा अत्यंत व्यापक है। समग्रता मे यह कह सकते हैं कि “सभी मानव स्वतत्र जन्म लिया है और सबको समान रूप से रहने का अधिकार है । “ पराधीन सपनह सुख नाही ..कहीं न कहीं रामचरित मानस की इसी पंक्ति में मानवाधिकार की अवधारणा तलाशी जा सकती है। मनुष्य का वास्तविक स्वभाव स्वतंत्रता वादी है । वह बंधन मे नही रहना चाहता है। किन्तु समाज जैसे जैसे विकसित होते गया मनुष्य के व्यवहार और आचरण पर सीधे अथवा प्ररान्तर से अंकुश लगते गए । वह चाहे सभयता का सामाजिक बन्धन हो, धर्म का बंधन हो अथवा परम्परा का बंधन हो । वस्तव मे इन सीमाओं का निर्माण मनुष्य ने स्वयं किया । किन्तु जैसे जैसे ये सीमाएं अपनी पकर मजबूत करती गयीं मनुष्य की बेचैनी भी बढ्ती गई। नियम क्कानून की बेरियों मे उस्के कुछ मूल भूत अधिकार भी छिनने लगे। उक्त सीमाओ के कारण मनुष्य की इस छटपटाहट को समाज ने महसूस किया । सुनियेाजित ढंग से उसने विश्व स्तर पर अपने अधिकारों की रूप रेखा तय की ताकि मानव के मूल अधिकारों की रक्षा हो सके । मानव स्वयं को वसुधा का सबसे सुन्दर प्राणी धोषितत कर चुका है । इस प्रकार आधुनिक युग मे मानवाधिकार का स्वरूप उभर कर सामने आया ।
सर्वप्रथम आठवीं शताब्दी मे मेग्ना कार्टा में 1215 मे इस विचार को अभिव्यक्ति मिली । और कालक्रम मे मेग्ना कार्टा अधिकारों के लिए एक मुहावरा वन गया । पुनः 1776 में अमेरिकन डिक्लरेशन आॅफ इन्डिपेन्डेन्स मे मानवाधिकार का स्वरूप उभर कर सामने आया । इसके उपरान्त फ्रांस मे फ्रेन्च इिक्लरेयान आफ राइटस आफ मैन 1789 मे मानवाधिकार की अवधारणा पर प्रकाष इाला । इस प्रकार कालक्रम मे अनेक ऐसे डिक्लारेषन हुए । जिससे मानवधिकार का एक विषेष स्वरूप विष्व स्तर पर बनता गया ।
इस प्रकार मानवधिकार का दायरा अत्यंत व्यापक है इसे इस रूप् मे हम देख रहे है । इसके मूलतः
निंम्म अयाम है
-व्यक्ति के हितों का संरक्ष।
-किसी भी संध अथवा समूह के हितों की रक्षा।
-किसी समुदाय राष्ट्र के हितों की रक्षा ।
सभी मानव स्वतंत्र जन्म लिया है, सबको समान रूप से रहने का अधिकार है । भारत के संदर्भ मे इसके मूल रूप में देखने के लिए तो हमें पुनः भारत के सांस्कृतिक अतीत मे जाना परेगा।
‘वसु़धैव कुटुम्बकम ’ जैसे वाक्य हमारी समृद्ध संस्कृति मे मानवाधिकार के अवधारणाओं से परिपूर्ण है - इसमें हम निम्न भाव देख सकते है: -
-विभिन्न संस्कृति मे एकता
-परम्परा मे समानता
-विभिन्न धर्मो के प्रति आस्था
-भारत मे आस्था
इसी प्रकार
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भ्रदाणि पष्यन्तु;मा कष्चित दुख भात भवेत ।
जैसे शूक्ति में हम समता का अधिकार की व्यापकता देख सकते हैं । मेरी दृष्टि से सर्वकल्याणवादी यह उक्ति सर्वहितार्थ है और सम्पूर्णतया समता मूलक है। -
अतः जो पष्चिम आज मानवाधिकार के बारे मे १२१५ मे सोच रहा था वह भारत मे वैदिक युग से ही है । फिर आधुनिक युग मे पं0 जवाहर लाल नेहरू ने सिविल लिवर्टी यूनियन अंग्रेजों के द्वारा किए जा रहे मानवाधिकारों के हनन को उजागर करने के लिए बनाया । इसकी स्थापना 1936 मे हुयी । इसके अध्यक्ष के रूप् मे रवीन्द्र नाथ ठाकुर एव सरोजनी नायइू सचिव के रूप मे जुइी । बाद मे जस्टिस नियोगी ; अब्दुल कलाम ; कृस्ण मेनन आदि सरीखे अनेक ंव्यक्ति इससे जुइे । वर्तमान मे मानवाधिकार के तहत प्राप्त अणिकारो को संक्षेप मे इस प्रकार देखा जा सकता है ।
सामाजिक
आथर््िाक
नागरिक
षैक्षणिक एव सांस्कृतिक
सामाजिक अधिकारों के अंतर्गत निम्मअधिकार आते है। जिन्हें निम्म प्रकार से दर्षाया जा सकता है ।
सामाजिक
समता का अधिकार
सुरक्षाका अधिकार
यौन भेदभाव से सुरक्षा
सामाजिक भेदभाव से सुरक्षा
आर्थिक
कार्य का अधिकार
समान कार्य हेतु समान पारिज्ञ्रम
न्यायाचित वेतन
मजदूर संधों मे ष्षामिल होने का अधिकार
सुव्यवस्थित सम्मानित जीवन स्तर रखने का अधिकार
नागरिक
अकारण गिरपतार करने से बचाव
आवास एव ऋण की स्वतंत्रता
धर्म एव उपासना की स्वतंत्रता
विचार एव अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
षान्तिपूर्ण ढंग से एकत्र होने की स्वतंत्रता
नागरिकता का अधिकार
षिक्षण एवं सास्कृतिक अधिकार
षिक्षा प्राप्त करने का अधिकार
आरभ्भिक तथा मुपत षिक्षा
भासा के व्यवहार एएव उसकी सुरक्षाका अधिकार
अपनी संस्कृति की रक्षाका अणिकार
ये अधिकार भारतीय संविधान के द्वारा प्रद्वत मूल अधिकारो से सम्पुस्ट है ।धारा 32एव 266के द्वारा उच्चतम न्यायालय को नागरिक अधिकारों की सुरक्षा का अधिकार दिया है ।
राष्ट्ीय मानवाधिकार आयोग
मानवाधिकारों के संरक्षण की दृस्टि से तथा इन अधिकारों कों अधिक सम्पुस्ट करने की दृस्ट से 1993 मे रास्ट्ीय मानवाधिकार आयोग का गढन हुया । जिसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के अवकाष प्राप्त मुख्य न्यायाधीष जस्टिस रंगनाथ मिज्ञ्र को बनाया गया । इस आयोग के कार्यो और उतरायित्व संक्षेप मे इस प्रकार है ं ।
-मानवाधिकारों की सुरक्षा
- मानवाधिकारों कंे क्षेत्र मे षोाध को प्रश्रय देना
- समाज के विभिन्न वर्गो मे मानवाधिकारों की षिक्षा देना
- मानवाधिकारों की सुरक्षाके लिए जागृति उत्पन्न करना
बाल अधिकार
मानवाधिकार के तहत महिलाओं और बच्चों को कुछ विसेस अधिकार प्रदान किए गये है । मैं विसय के द्वितीय अंष के अनुरूप बाल अधिकार पर बात करूगा ।
वर्ड्सवर्थ ने कहा है ‘ब्भ्प्स्क् प्ै ज्भ्म् थ्।ज्भ्म्त् व्थ् ड।छ’ भारतीय दर्षन मे भी यह भाव अनेक रूपों मे ंविद्यमान है । अतःमानवाधिकार की यदि कोई बात होती है तो निष्चित रूपसे इसकी ष्षुरूआत बच्चों से होनी चाहिए ।
अंतरास्ट्ीय कानूनो में बच्चो कुछ विसेस अधिकार दिये गए है । जिनमे ये प्रमुख है -
1़ 1924 मे जेनेवा डिक्लेरेषन बच्चों के अधिकार हेतु किया गया ।
2 1948- संयुक्त रास्ट् संद्य का डिक्लेरेषन आया । इन सब के अनुुसार -बच्चों को षारिरीक,मानसिक,नैतिक,धार्मिक एवं सामाजिक रूप से विकसित होने के लिए विषेस सुरक्षा और माहौल मिलना चाहिए ।
3 हर बच्चा अपने जन्म से ही नाम और नागरिकता का अधिकारी होगा।
4 उन्हें सम्पूर्ण सामाजिक सुरक्षा प्राप्त होगी ।
5 मानसिक षारिरीक स्तर पर विकलांग बच्चे विषेस सुविधा के अधिकारी होंगे ।
भारत में बाल कल्याण हेतु निम्मलिखित संवैद्यानिक प्रावद्यान किए गये है ।
बाल अधिकार: - धारा 15 के तहत राज्यों को महिला एव वच्चों के लिए विषेस कानूनी
प्रावधान करने हेतु अधिकृत किया गया है ।
- धारा 24कारखाना आदि मे वच्चों केनौकरी पर रोक लगाती है
- धारा 39ई एवं एस ; बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा का दायित्व राज्य को
देती है । और ऐसे अवसरो को उपलव़्द्य कराने का दायित्व सौपती है जहाॅ बच्चों सम्मान के साथ विकसित हों ।
इसके अतिरिक्त अंतरास्ट्ीय स्तर पर संयुक्त रास्ट सं़़द्य ने बाल ज्ञ्रमिेका की सुरक्षा हेतु निम्म लिखित प्रावद्यान किए-
1 ़ 15 वर्ष के नीचे के बच्चों की मजदूरी पर रोक ।
2 ़ बाल श्रमिकों की सुरक्षा
3 ़ बच्चों के रात्रि कार्य पर रोक
4 ़ हानिकारक और खतरा पूर्ण कार्यो हेतु 18 वर्ष तक के वच्चों पर रोक ।
5़ ़ बाल श्रमिकों का समय समय पर ड़ाक्टरी जाॅंच
6. बाल श्रमिकों के लिए अवकाष के क्षणों विषेस निर्देषन एवं प्रषिक्षण की व्यवस्था जिससे वे अच्छे कार्यो का चयन कर सके ।
संयुक्त रास्ट् संद्य के इन उद्वेष्यों की पूर्ति यूनिसेफ के माध्यम से होती है । यूनिसेफ सम्पूर्ण विष्व मे विभिन्न सरकारी गैर सरकारी स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से बाल अधिकार की सुरक्षा एवं विकास हेतु कार्य करता है । जिसके तहत बाल षिक्षा ; स्वास्थ्य बाल अधिकारों की जानकारी तथा बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता उतपन्न की जाती है ।
इस क्रम मे 1990 मे ‘वल्डऱ् समिट आॅंन चिल्ड्ेन ’ एक महत्वपूर्ण धटना है । विभिन्न देषों के सरकार केा वच्चों सुरक्षा हेतु कानून बनाने का सुक्षाव दिया गया ।
उपर्युक्त प्राव़़द्यानों के उपरान्त भी आज भारत में 114मिलियन वच्चे जो छह से चौदह वर्स के मध्य के है श्रम करने के लिए विवष है ।1993में किए गये एक सवेक्षण के माध्यम से यह पता लगाने की चेस्टा की गई कि किन कारणों से वच्चे काम करते है ैजो निस्कसर््ा सामने आया वह इस प्रकार है ।
क््रम सं0 कारण प््रतिषत
1. गरीबी 23/
2. ग्ृाह उद्योग में माता पिता को सहयोग प्रदान करने में 33.2/
3. मता पिता की ईक्षा के कारण 26.3/
4. अपनी कमाई करने की प्रबृत्ति 7.9/
5. न्हीं कुछ करने से अच्छा 6.8/
6. अन्य कारणेंा से 2.6/
जिनके हाथों की कोमलता अभ्ी गयी नहीं उनके प्रति हमारी क्या दायित्व है यह हमंे किसी और से नही सीखना पड़े यही षुभ है । यदि हम अपने प्रांत की बात करें तो सरकार की ओर से आष्चर्यजनक उपेक्षा बालको के अधिकारों के प्रति दृष्टिगत होता है । बिहार राज्य के विभिन्न न्यायालयो मे 800 से अधिक विचाराधीन मुकदमों 1100 से अधिक बच्चें कारागरों मे बंद है । उनका विचारण न्यायालयो में विभिन्न स्तरों पर मात्र इस लिए लम्बित है कि बिहार सरकार किषोर न्याय अधिनियम 2000 के अधीन विभिन्न स्तरों पर किषोर न्याय परिषद को प्रभावी बना सके । जिला एवं सत्र न्यायद्यीषों ने नए मुकदमें के तहत किषोरों से संबंधित मुकदमें के विचारण के लिए पटना उच्च न्यायालय का मंतव्य जानना चाहा है । किषोर न्याय अधिनियम की धारा 4की आदेषानुसार किषोर न्याय परिर्षद को प्रभावी नही बनाने के कारण उनसे संबंधित मुकदमों को ष्रीध निषर््पादन मे बाधा पड रही है । कानूनी प्रावधान होते हुये भी बिहार के किषोरो को कुप्रभावों का षिकार बनना पड रहा है। यातना सहने के लिए किषोरो का मामला मानवाधिकारों का हनन है। बिहार मे किषोर न्याय परिसद के सक्रिय न रहने के कारण इन किषोर कैदियो की स्थिति खुखार अपराधियों से भी अधिक दयनीय बन गयी है । यह निर्विवाद सत्य है कि मानवाधिकार के गर्भ से ही नागरिक असुरक्षा और जन क्षोभ का जन्म होता है ।
अतः मानवाधिकारो की रक्षा तबतक संभव नही है जबतक कि इसकी षुरूआत बाल अधिकारो की रक्षा से न हो । अनेक बाल कैदी छोटे - छोटे अपराधेंा के कारण कई बर्षांे तक विचाराधीन रूप मे बंद रहते है । उन अपराधों के कारण की कही उन्हें कैद से कम होगा । इस विषम परिस्थिति मे बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए भारतीय स्वयं सेवी संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए ।
हमारी भारतीय संस्कृति तो अपने राष्ट् के भविष्य के लिए अत्यंत सचेत रहा है । बच्चों की परवरिष के संबं़द्य में यह उक्ति प्रसिद्व है -
लाड़येति पंच वर्षाणि , तारयेति दस वर्षाणि ।
प्राप्ते षोडर्षे बर्र्षे , पुत्र मिंत्र समाचरेत ।
यह बच्चों के लालन पालन एवं किषारो क ेसाथ व्यवहार के लिए जैसे एक आचार संहिता का निर्माण करता है। किसी षायर ने कहा -
मासूम उमंगें झूम रही हैं दिलदारी के झूलों में ।
ये नन्ही कलिय्ाॅं क्या जाने, कब खिलना कब मूर्झाना है ।
हमें सावधान रहना चाहिए कि ये नन्ही कलियाॅं कहीं पुष्पित होने के पूर्व ही न मूक्र्षा जाएॅं । हम सबों को स्मरण रखना चाहिए कि -
‘ बच्चे मन के सच्चे
सारे जग के आं ख के तारे
ये वो नन्हें फूल हैं जो
भगवान को लगते प्यारे
इस आषा के साथ कि हम सबो के प्रयास से भारत के भविष्य (जो आज के बच्चे है ) के समस्त अधिकारों की रक्षा हो सकेगी तथा उनका सर्वागिण विकास हो सकेगा ।